भक्तामर स्तोत्र एक महान स्तोत्र है। इसकी रचना विशेष परिस्थिति में हुई। उसके संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। जहाँ शक्तिशाली स्तोत्र होता है वहां उसके साथ चमत्कार की अनेक घटनाएं जुड़ जाती हैं। भक्तामर के साथ भी चमत्कार की घटना जुड़ी हुई है। जब आचार्य श्री मानतुंगसूरि जी ने भक्तामर की रचना की तो चमत्कार घटित हो गया। कड़ियाँ टूटती चली गयीं, बंधन टूट गये।
यह चमत्कार केवल शब्दों को बोलने मात्र से घटित नहीं होता है। जब तक शब्दों के साथ भावना का योग नहीं मिलता, उसके अर्थ के साथ तल्लीन नहीं हो जाते, अपने आराध्य में लीन नहीं होते तब तक शक्ति का विस्फोट नहीं होता। भावना पुष्ट होती है, उच्चारण शुद्ध होता है तो मंत्र, स्तोत्र शक्तिशाली बन जाते हैं।
सफलता तब मिलती है जब शब्द, अर्थ का ज्ञान और अभिन्नता की अनुभूति ये तीनों एक साथ होती हैं। शब्द का सही उच्चारण, अर्थ का ज्ञान और आराध्य के साथ एकात्मकता - ये तीनों सफलता के लिए बहुत आवश्यक है।
जिसने समर्पण कर दिया। अपने आराध्य के साथ तादात्म्य स्थापित कर लिया वह लक्ष्य को प्राप्त करता है। आचार्यश्री पूर्ण विनय एवं समर्पण भाव से भगवान ऋषभदेव की स्तुति में तन्मय हो गये। एक-एक श्लोक की - अपूर्व भावों की धारा बहने लगी और कड़ियाँ खुलती चली गयीं।
इसका हर श्लोक दिव्यता प्रदान करने वाला है। बस आवश्यकता है उसके साथ सही रूप में हम जुड़ सकें। प्रत्येक श्लोक के साथ जब हम भाव पूर्णता के साथ जुड़ना शुरु करते हैं तो हम स्वयं के अंतर में उतरते चले जाते हैं। आत्मा और परमात्मा के तार आपस में जुड़ने लगते हैं और उत्तम भावों के दिव्य प्रभाव से आत्मा के अंतर में स्थित शुभ्रता की जागृति शुरु होती है अज्ञान का अंधकार छटने लगता है और शुरु हो जाता है हमारा आध्यात्मिक, आत्मिक विकास का दौर।
कहा भी गया है कि हमारी आत्मा अनन्त शक्ति का स्रोत है, हमें इस शक्ति को जागरुक करने की जरूरत है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक ‘‘भक्तामर : अंतःस्तल का स्पर्श’’, आचार्य श्रीमद् विजय राजयशसूरि जी म. के “भक्तामर दर्शन” तथा श्री श्रीचन्द “सरस” जी की भक्तामर महिमा तथा “सचित्र भक्तामर स्तोत्र” आदि भक्तामर के विषय में अत्यन्त नयनाभिराम, सारगर्भित रचनाएं हैं जो हमें भक्तामर के दिव्य प्रभावों की जानकारी सहज और सरल रूप में उपलब्ध कराती हैं।
हम आगे एक-एक श्लोक के भावों को समझने का प्रयास करेंगे और इसके भक्तिरस का आनन्द अनुभव करेंगे।- राजेश सुराना (पुणे)
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