Sunday, 17 February 2019

भक्तामर स्तोत्र श्लोक 15-16 के भाव एवं लाभ (आध्यात्मिक उन्नति का महामंत्र)

 श्लोक 15 एवं 16 आध्यात्मिक उन्नति के महामंत्र कहे जाते हैं।

श्लोक 15 के भावः
आचार्य मानतुंगजी कहते हैंः हे वीतराग! आपने पूर्ण शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति कर ली है, राग पर विजय प्राप्त कर ली है। जो प्रभावित होने की अवस्था है उसे समाप्त कर दिया। इस स्थिति में कोई निमित्त आपको विचलित नहीं कर पाए, फिर वे देवांगनाएं ही क्यों न हो। 

हवा तेज चले या धीमी वह प्राणी जगत् को प्रभावित करती है। तेज तूफानी हवाएं वृक्षों को उखाड़ सकती हैं तथा धरती पर अस्त-व्यस्तता फैला देती हैं। प्रलयंकारी तूफानों से छोटे पर्वत भी कंपायमान हो जाते हैं। परन्तु क्या प्रलयंकारी तूफानी हवाएं मंदराचल पर्वत को भी विचलित कर सकती हैं? नहीं, वह किसी प्रकार से विचलित नहीं होता। प्रभु, आपका धैर्य भी मंदराचल पर्वत की भाँति अप्रकंप है, अविचल है। आपका आत्मबल और कषाय-विजय इतने दृढ़ हैं कि राग का कोई भी हेतु आपको विचलित नहीं कर सकता तो इसमें आश्चर्य ही क्या है?

आचार्यश्री ने भाव कुछ इस प्रकार कहे हैं-जितनी धैर्यशीलता, आत्म-नियंत्रण की शक्ति बढ़ेगी उतने ही हम राग-द्वेष, कषायों से अप्रभावित रहेंगे, अविचलित रहेंगे।

अब आचार्यश्री प्रभु के सौन्दर्य से आगे बढ़ कर, गुणों की व्याख्या कर, स्तुतिपाठ को आगे बढ़ाते हैंः
जहाँ राग पर विजय होती है वहाँ ज्योति प्रकट होती है। राग-द्वेष और कषाय ये तमोगुण पैदा करने वाले तत्व हैं। वीतरागता अात्मा को प्रकाशित करने वाला तत्व है।
इसी आधार पर, श्लोक 16 में आचार्यश्री मानतुंग कहते हैंः हे प्रभु! आप ज्योतिर्मय हैं। प्रकाशमय दीप हैं जिसे न बाती की आवश्यकता है न तेल की और न ही जिसकी ज्योति किसी प्रकार का धूँआ प्रकट करती है। और जिसका प्रकाश तीनों जगत् को प्रकाशित करता है।

आचार्यश्री कह रहे हैं- प्रभु ! मैं एक दीपक से आपकी तुलना कैसे कर सकता हूँ क्योंकि दीपक सीमित क्षेत्र में ही प्रकाश करता है, हवाओं के प्रकंप से उसकी ज्योति काँप जाती है, बुझ जाती है, उससे धूँआ निकलता है, परन्तु आपकी ज्योति तो अप्रकंप है, सदा ही ज्योतिर्मय रहती है तथा निर्धूम है। आपका ज्ञान-प्रकाश अपूर्व है। आपके ज्ञान-प्रकाश से कहीं भी अंधकार नहीं रहता। आपका केवल ज्ञान तीनों लोकों को प्रकाशित करता है। 

इस प्रकार इन दो श्लोकों में (15 एवं 16) आचार्यश्री मानतुंगजी ने आंतरिक शक्ति का उद्भावन किया है। धैर्य विकास की वृद्धि करते हुए अविचलन एवं प्रकाश का संदेश दिया है। इन दोनों श्लोकों की श्रद्धापूर्वक ध्यान साधना अविचलन, इंट्यूशन पावर (अंतर्दृष्टि) के जागरण का कारक बनती है।

इस दिशा में ये दोनों श्लोक महामंत्र का कार्य करते हैं। ये दोनों श्लोक आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग हैं।

भक्तामर स्तोत्र के श्लोकों के दिव्य प्रभावों के विषय में तथा इनके भावों के विषय में और अधिक जानने की आप जिज्ञासा रखते हैं तो आप ईमेल पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं। -राजेश सुराना (पुणे)
E-mail : religiousraaga@gmail.com

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