भक्तामर स्तोत्र के श्लोक 28 - 35 तीर्थंकर के आठ अतिशय, अष्ट प्रातिहार्यों के विषय में हैं।
भगवान को केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् समवसरण में इन्द्रदेव आठ प्रातिहार्यों का रचना करते हैं। ये प्रातिहार्य विशेष महिमा का ज्ञान कराने वाले होते हैं। इन प्रातिहार्यों के साथ प्रभु की दिव्य छवि के मनोरम स्वरूप का ध्यान हमारे जीवन में बहुत कुछ विशेष घटित कर सकता है।
गर्भावस्था के दौरान इन अष्ट प्रातिहार्य वर्णित श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ नीचे बताए अनुसार भावना करने पर इनके दिव्य प्रभाव से आने वाला जीव ओजस्वी, सौम्य, मतिमान एवं श्रेष्ठ बुद्धि का धारक, असाधारण प्रतिभाशाली, श्रेष्ठ गुणों वाला, रूपवान, स्वस्थ एवं सभी को प्रिय होता है।
श्लोक 28 -
मानसिक शान्ति प्रदान करता है, उत्तेजना एवं आवेश शान्त करता है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ ऊँचे घने अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान भगवान आदिनाथ का ध्यान करें। भगवान के दिव्य स्वरूप से ऊपर निकलती हुई सुन्दर सुनहरी किरणें घने अशोक पर छा रही हैं ऐसा ध्यान करें।
भगवान के इस दिव्य सौम्य रूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव भगवान के इन सौम्य शान्त गुणों को धारण कर रहा है।
श्लोक 29 -
आन्तरिक शक्तियों एवं अन्तर्दृष्टि का जागरण। स्फुर्ति, सक्रीयता एवं जागृति वृद्धि में सहायक।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान भगवान ऋषभदेव का ध्यान करें। उगते हुए सूर्य की लालिमायुक्त किरणें निकलती हुई कल्पना करें। भगवान के इस तेजस्वी रूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव प्रभु के समान तेजस्वी, ऊर्जावान और ज्ञानवान हो। ये सभी गुण उसमें समाहित हो रहे हैं।
श्लोक 30 -
उत्तेजना एवं आवेश शान्त करता है। मन में आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ प्रभु के स्वर्णिम देह के दोनों ओर डुलते हुए श्वेत चामर की कल्पना करें। जैसे सुनहरे सुमेरु पर्वत के शिखर से दोनों ओर बहते हुए स्वच्छ निर्मल जल की श्वेत जलधारा गिर रही है। जो उगते हुए चाँद जैसी लग रही है। ऐसे ही श्वेत चवंरों के बीच ऋषभदेव भगवान का मनोहर स्वर्णिम स्वरूप का ध्यान करें।
भगवान के इस शान्त मनोरम स्वरूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव प्रभु के समान शान्त, सौम्य, शोभायमान और मनोहर कान्ति युक्त हो। भगवान के ये सभी गुण वह जीव ग्रहण कर रहा है।
श्लोक 31 -
सुख एवं शान्ति का अनुभव होता है एवं मैत्री भाव जागृत होता है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ भाव करें कि प्रभु के मस्तक के ऊपर अत्यन्त सुन्दर चन्द्रमा के समान, सुन्दर श्वेत वर्ण वाले तीन छत्र हैं जिनमें मोतियों की सुन्दर झालरें लटक रही हैं। इन छत्रों ने सूर्य के की तीव्र गर्मी को प्रभु के ऊपर आने से रोक दिया है। इन छत्रों के नीचे विराजमान भगवान के स्वर्णिम स्वरूप की कल्पना करें। ऋषभदेव के ऊपर स्थित तीन छत्र बता रहे हैं कि प्रभु तीनों लोकों के स्वामी हैं। तीनों लोकों का स्वामी वही होता है जो तीन लोक के प्रत्येक प्राणी को शान्ति दे, तीन लोक में सुख का सृजन करे।
तीर्थंकर का जब जन्म होता है तब एक क्षण के लिए नरक में भी सुख हो जाता है, सारा कष्ट समाप्त हो जाता है। तीर्थंकर के निर्वाण के समय भी समग्र लोक में सुख, शान्ति व्याप्त होती है। मैत्री की धारा हृदय में प्रवाहित होती है।
ऐसे दिव्य स्वरूप की भावना करें और भावें कि आने वाला जीव अपने जीवन में सभी के लिए कल्याणकारी, सुख देने वाला एवं सभी के साथ मैत्री भाव सहित रहने वाला एक सौम्य, शान्त स्वभावी जीव होगा।
श्लोक 32 -
संसार में यश प्राप्ति का कारक है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें जैसे आकाश में देवता दुन्दुभि बजाते हुए शुभ सम्पत्ति प्रदाता प्रभु के द्वारा बताए कल्याणमार्ग के यश की घोषणा करते हैं, उसी प्रकार ऋषभदेव प्रभु के समान ही आने वाला जीव लोक कल्याण भावों से युक्त हो तथा उसका सुयश संसार की सभी दिशाओं में व्याप्त हो।
श्लोक 33 एवं 35 -
मनमोहक, मन-भावन सर्वप्रिय, सर्व हितकर आनन्द विभोर करने वाली सुस्पष्ट, कुशल विलक्षण समाधानकारी वाणी प्राप्ति का कारक।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इन श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें कि समवसरण में प्रभु की दिव्य ओजस्वी वाणी को सभी प्राणी अपनी अपनी भाषा में समझते हुए आनन्द विभोर हो रहे हैं और उस वाणी को वे श्रद्धापूर्वक अपने आचरण में उतारकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। इन भावों को मन में भाते हुए विचारें कि आने वाला जीव प्रभु ऋषभदेव के समान ही सबका चित्त हरने वाली दिव्य मधुर वाणी वाला हो।
श्लोक 34 -
सौम्यता और तेजस्विता की प्राप्ति तथा जीवन में सुख-शान्ति का आगमन ।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें प्रभु के दिव्य स्वरूप का जिसका तेज हजारों सूर्य से भी अधिक होते हुए भी, उनका सामिप्य चंद्रमा जैसी शीतलता प्रदान कर रहा है। इन भावों के साथ भावना करें कि आने वाला जीव प्रभु के समान महान तेजस्वी स्वरूपवान हो जिसके सामिप्य से, साथ से सभी को आनन्द एवं शान्ति की अनुभूति हो।
भक्तामर स्तोत्र के शुद्ध उच्चारण के वीडियो हमारे youtube channel -religiousraaga पर जाकर आप देख सकते हैं। इसका लिंक नीचे दिया गया है-
भक्तामर स्तोत्र के श्लोकों के दिव्य प्रभावों के विषय में तथा इनके भावों के विषय में और अधिक जानने की आप जिज्ञासा रखते हैं तो आप ईमेल पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं। -राजेश सुराना (पुणे)
E-mail : religiousraaga@gmail.com
गर्भावस्था के दौरान इन अष्ट प्रातिहार्य वर्णित श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ नीचे बताए अनुसार भावना करने पर इनके दिव्य प्रभाव से आने वाला जीव ओजस्वी, सौम्य, मतिमान एवं श्रेष्ठ बुद्धि का धारक, असाधारण प्रतिभाशाली, श्रेष्ठ गुणों वाला, रूपवान, स्वस्थ एवं सभी को प्रिय होता है।
श्लोक 28 -
मानसिक शान्ति प्रदान करता है, उत्तेजना एवं आवेश शान्त करता है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ ऊँचे घने अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान भगवान आदिनाथ का ध्यान करें। भगवान के दिव्य स्वरूप से ऊपर निकलती हुई सुन्दर सुनहरी किरणें घने अशोक पर छा रही हैं ऐसा ध्यान करें।
भगवान के इस दिव्य सौम्य रूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव भगवान के इन सौम्य शान्त गुणों को धारण कर रहा है।
श्लोक 29 -
आन्तरिक शक्तियों एवं अन्तर्दृष्टि का जागरण। स्फुर्ति, सक्रीयता एवं जागृति वृद्धि में सहायक।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान भगवान ऋषभदेव का ध्यान करें। उगते हुए सूर्य की लालिमायुक्त किरणें निकलती हुई कल्पना करें। भगवान के इस तेजस्वी रूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव प्रभु के समान तेजस्वी, ऊर्जावान और ज्ञानवान हो। ये सभी गुण उसमें समाहित हो रहे हैं।
श्लोक 30 -
उत्तेजना एवं आवेश शान्त करता है। मन में आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ प्रभु के स्वर्णिम देह के दोनों ओर डुलते हुए श्वेत चामर की कल्पना करें। जैसे सुनहरे सुमेरु पर्वत के शिखर से दोनों ओर बहते हुए स्वच्छ निर्मल जल की श्वेत जलधारा गिर रही है। जो उगते हुए चाँद जैसी लग रही है। ऐसे ही श्वेत चवंरों के बीच ऋषभदेव भगवान का मनोहर स्वर्णिम स्वरूप का ध्यान करें।
भगवान के इस शान्त मनोरम स्वरूप का ध्यान करते हुए भाव करें कि होने वाला जीव प्रभु के समान शान्त, सौम्य, शोभायमान और मनोहर कान्ति युक्त हो। भगवान के ये सभी गुण वह जीव ग्रहण कर रहा है।
श्लोक 31 -
सुख एवं शान्ति का अनुभव होता है एवं मैत्री भाव जागृत होता है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ भाव करें कि प्रभु के मस्तक के ऊपर अत्यन्त सुन्दर चन्द्रमा के समान, सुन्दर श्वेत वर्ण वाले तीन छत्र हैं जिनमें मोतियों की सुन्दर झालरें लटक रही हैं। इन छत्रों ने सूर्य के की तीव्र गर्मी को प्रभु के ऊपर आने से रोक दिया है। इन छत्रों के नीचे विराजमान भगवान के स्वर्णिम स्वरूप की कल्पना करें। ऋषभदेव के ऊपर स्थित तीन छत्र बता रहे हैं कि प्रभु तीनों लोकों के स्वामी हैं। तीनों लोकों का स्वामी वही होता है जो तीन लोक के प्रत्येक प्राणी को शान्ति दे, तीन लोक में सुख का सृजन करे।
तीर्थंकर का जब जन्म होता है तब एक क्षण के लिए नरक में भी सुख हो जाता है, सारा कष्ट समाप्त हो जाता है। तीर्थंकर के निर्वाण के समय भी समग्र लोक में सुख, शान्ति व्याप्त होती है। मैत्री की धारा हृदय में प्रवाहित होती है।
ऐसे दिव्य स्वरूप की भावना करें और भावें कि आने वाला जीव अपने जीवन में सभी के लिए कल्याणकारी, सुख देने वाला एवं सभी के साथ मैत्री भाव सहित रहने वाला एक सौम्य, शान्त स्वभावी जीव होगा।
श्लोक 32 -
संसार में यश प्राप्ति का कारक है।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें जैसे आकाश में देवता दुन्दुभि बजाते हुए शुभ सम्पत्ति प्रदाता प्रभु के द्वारा बताए कल्याणमार्ग के यश की घोषणा करते हैं, उसी प्रकार ऋषभदेव प्रभु के समान ही आने वाला जीव लोक कल्याण भावों से युक्त हो तथा उसका सुयश संसार की सभी दिशाओं में व्याप्त हो।
श्लोक 33 एवं 35 -
मनमोहक, मन-भावन सर्वप्रिय, सर्व हितकर आनन्द विभोर करने वाली सुस्पष्ट, कुशल विलक्षण समाधानकारी वाणी प्राप्ति का कारक।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इन श्लोकों के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें कि समवसरण में प्रभु की दिव्य ओजस्वी वाणी को सभी प्राणी अपनी अपनी भाषा में समझते हुए आनन्द विभोर हो रहे हैं और उस वाणी को वे श्रद्धापूर्वक अपने आचरण में उतारकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। इन भावों को मन में भाते हुए विचारें कि आने वाला जीव प्रभु ऋषभदेव के समान ही सबका चित्त हरने वाली दिव्य मधुर वाणी वाला हो।
श्लोक 34 -
सौम्यता और तेजस्विता की प्राप्ति तथा जीवन में सुख-शान्ति का आगमन ।
गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ध्यान प्रयोगः
इस श्लोक के शुद्ध उच्चारण के साथ कल्पना करें प्रभु के दिव्य स्वरूप का जिसका तेज हजारों सूर्य से भी अधिक होते हुए भी, उनका सामिप्य चंद्रमा जैसी शीतलता प्रदान कर रहा है। इन भावों के साथ भावना करें कि आने वाला जीव प्रभु के समान महान तेजस्वी स्वरूपवान हो जिसके सामिप्य से, साथ से सभी को आनन्द एवं शान्ति की अनुभूति हो।
भक्तामर स्तोत्र के शुद्ध उच्चारण के वीडियो हमारे youtube channel -religiousraaga पर जाकर आप देख सकते हैं। इसका लिंक नीचे दिया गया है-
https://www.youtube.com/playlist?list=PLh19FvlD3BpoLMz4gSrdwX8uFqAKcsvwu
भक्तामर स्तोत्र के श्लोकों के दिव्य प्रभावों के विषय में तथा इनके भावों के विषय में और अधिक जानने की आप जिज्ञासा रखते हैं तो आप ईमेल पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं। -राजेश सुराना (पुणे)
E-mail : religiousraaga@gmail.com