Tuesday, 5 March 2019

भक्तामर स्तोत्र श्लोक 21-22 के भाव एवं लाभ (सौम्य सौभाग्य प्राप्ति एवं ज्ञान ज्योति का जागरण)


श्लोक 21 के भावः

भगवान श्री आदिनाथ की स्तुति का प्रवाह सतत् गतिशील है। आचार्य मानतुंगजी कह रहे हैं- मैंने हरि, हर आदि देवों को, जो अन्य दर्शनों के नायक हैं, पहले देख लिया यह अच्छा ही हुआ। अर्थात् मैंने हरि के दर्शन को पढ़ लिया, हर के दर्शन को पढ़ लिया । सभी अन्य दर्शनों को पढ़ने के बाद आपको पढ़ा तो मुझे परम संतोष मिला ।

आचार्यश्री कहते हैं - मैंने उन्हें पढ़ने के बाद आपका अनेकान्त दर्शन पढ़ा जिसके बाद अन्य कोई दर्शन अब मेरे चित्त का हरण नहीं करता। मैंने अनेकान्त दर्शन को पढ़ा तो परम संतोष का अनुभव हुआ। मुझे जो आनन्द और तृप्ति मिली, वह अपूर्व है, इसलिए अन्य दर्शनों के प्रति मेरा आकर्षण समाप्त हो गया।

आचार्य श्री मानतुंगजी ने अपनी अपूर्व संतुष्टि को कुछ इस स्वर में अभिव्यक्ति दी - मैंने एकांतवादी दर्शनों को देखा, समझा, अनुभव किया और उसके बाद अनेकान्त दर्शन को समझा। इसको समझने के बाद यह जाना कि अनेकान्त दर्शन में सारा समाधान उपलब्ध है। इसे जानकर हृदय शीतल हो गया। अब किसी भी अन्य दर्शन के प्रति मन आकृष्ट नहीं होता।

इस श्लोक में आचार्यश्री ने भगवान् ऋषभदेव के ज्ञान की विशेषता को प्रकट किया है। इस श्लोक की नियमित साधना से सौम्य सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
 
श्लोक 22 के भावः
 
आचार्यश्री अगले श्लोक में कह रहे हैं - प्रभु ! धन्य हैं आपकी माता, जिन्होंने ऐसे अनुपम पुत्र को जन्म दिया। सैंकड़ों-हजारों स्त्रियाँ पुत्रों को जन्म देती हैं, परन्तु किसी माता ने ऐसे पुत्र को जन्म नहीं दिया, जो आपकी तुलना में आ सके। महापुरुषों के माता-पिता को भी धन्यवाद दिया जाता है। आचार्यश्री आगे कहते हैं - सब दिशाओं में नक्षत्र और तारे हैं । प्रकाश सभी दिशाओं में आता है, परन्तु सूर्य को सब दिशाएं उत्पन्न नहीं करती हैं। सूर्य को पूर्व दिशा ही उत्पन्न करती है। 

आचार्यश्री ने बहुत ही सुन्दर तुलना की है- प्रकाश होना एक बात है, प्रकाशपुंज को प्रकट करना दूसरी बात है। जब प्रकाशपुंज प्रकट होता है तो सभी दिशाएं प्रकाशित हो जाती हैं। माता मरुदेवा ने उस प्रकाशपुंज को जन्म दिया जससे पूरा अध्यात्म जगत् आलोकित हो गया। 

आचार्यश्री माँ और पुत्र दोनों की विशेषताओं को बता रहे हैं। गुणात्मक विश्लेषण कर रहे हैं। गुणों की स्तुति कर रहे हैं। माँ और पुत्र के अतुलनीय चरित्र को सामने रखकर आचार्यश्री ने एक ही वाक्य में सब कुछ कह दिया - किसी माँ ने आप जैसा पुत्र प्रसूत नहीं किया।

अनन्त गुणों के धारक प्रभु का ध्यान करते हुए उनकी माता के प्रति श्रद्धा नमन के साथ श्लोक 22 की साधना से अंतर में ज्ञान ज्योति का जागरण प्रारम्भ होता है। 

भक्तामर स्तोत्र के श्लोकों के दिव्य प्रभावों के विषय में तथा इनके भावों के विषय में और अधिक जानने की आप जिज्ञासा रखते हैं तो आप ईमेल पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं। -राजेश सुराना (पुणे)
E-mail : religiousraaga@gmail.com

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